उन्होंने दावा किया है, यह लैंगिक समानता, महिलाओं के अधिकारों या लड़कियों के सशक्तीकरण को बढ़ावा नहीं देगा और मांओं एवं शिशुओं की सेहत को सुधारने में खास मददगार नहीं होगा. संस्थायो के हिसाब से पुरुष और महिलाओं की शादी की उम्र को सामान रखना केवल व्यर्थ है, इसमें किसी तरह का लैंगिक समानता नहीं दिखता।